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पराग, टाटा ट्रस्ट 2016 से नियमित रूप से शिक्षा, पुस्तकालय एवं बाल साहित्य के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों मसलन राजकीय शिक्षक, संदर्भ व्यक्तियों, विषय विशेषज्ञों, गैर सरकारी संगठनों एवं शिक्षा संगठनों आदि के लिए संचालित कर रहा है। इस कोर्स के वर्तमान समय में पौने दो सौ से ज्यादा एलुमनाई हैं जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लाइब्रेरी के कार्य से जुड़े हुए हैं। ये सभी समय-समय पर अपने काम के अनुभव एक दूसरे से साझा करते हैं। इसी एलुमनाई समूह ने इस वर्ष के पहले सप्ताह में दिनांक 8 जनवरी को ‘बच्चों की कविताओं पर बातचीत’ के लिए एक वेबीनार का आयोजन किया। जिसका उद्देश्य कविताओं की समझ, लाइब्रेरी में उनके उपयोग, अलग-अलग पाठ के साथ-साथ नई किताबों पर बातचीत करना था।

विगत दो-तीन वर्ष हिन्दी बाल साहित्य में कविताओं के प्रकाशन के लिहाज से उर्वर रहे हैं। दो दर्जन से अधिक कविता संग्रह, कविता चित्र पुस्तकें, कविता कार्ड एवं पोस्टर्स के रूप प्रकाशित हुई हैं। एकलव्य एवं इकतारा जैसे प्रकाशनों ने नई-पुरानी कविताओं को बहुरंगी कलेवर में पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। एकलव्य, भोपाल इसी क्रम में सुशील शुक्ल की नौ कविता चित्र पुस्तकों का प्रकाशन किया है। जिनमें ‘ये सारा उजाला सूरज का, मछली नदी खोल के बैठी, नीम तेरी निंबोली पीली, टिफिन दोस्त, ओ’ पेड़ रंगरेज’ आदि चित्र पुस्तकें हैं। सुशील शुक्ल हिन्दी के सुपरिचित कवि एवं संपादक हैं। इस बार कविताओं पर आधारित इस पहली चर्चा को इन कविता चित्र पुस्तकों पर केंद्रित रखा गया था।

वेबीनार के लिए चार एलुमनाई ने सहभागिता की, जो कोर्स के अलग-अलग बैच के प्रतिभागी रहे थे। वंदना कुलकर्णी (LEC-2021 बैच), पूनम शर्मा (LEC-2020 बैच), कुँवर (LEC-2021 बैच) और जय शेखर (LEC-2019 बैच) ने इन कविता चित्र पुस्तकों पर अपने-अपने अनुभव साझा किए।

वंदना कुलकर्णी ने सुशील शुक्ल की दो किताबें ‘नीम तेरी निंबोली पीली’ और ‘आम के सूखे पेड़ पर’ समालोचनात्मक टिप्पणियाँ प्रस्तुत की। जो इस प्रकार थी।

“सुशील शुक्ल की कविता चित्र पुस्तकों में किसे चर्चा के लिए चुनें यह बहुत मुश्किल था। इन किताबों के विषय अलग-अलग हैं और शिल्प अलग-अनूठा। कुछ समानताएँ भी हैं मसलन भावनाओं की नमी, संवेदनशीलता, रूप से आसपास की चीजों को देखना। जैसे उनके पास चीजों और उनके अंतर्संबंधों को देखने के लिए तीसरी आंख है। इन पुस्तकों के इलसट्रेटर अलग-अलग हैं, उनकी चित्र शैली अलग हैं और प्रत्येक पुस्तक बहुत सुंदर है। चित्रों ने जैसे कमाल कर दिया है. टिफिन दोस्त और आदा पादा ये खास बच्चों की किताबे है। बच्चों के भविष्य से, अनुभव से बेहद करीब से जुड़ी ये किताबें बहुत मजेदार हैं। इन किताबों के पाठक बच्चे भी हैं, वयस्क भी। वयस्कों के लिए इन कविताओं से अर्थ की विभिन्न परतें खुलती रहती हैं। मैंने इन किताबों को जितनी बार पढ़ा, इनके चित्र जितनी बार देखे, हर बार एक अलग आनंद मिला।

समीक्षा के चुनी दोनों किताबों का विषय पेड़ है। लेकिन दोनों किताबें बिलकुल अलग प्रकार की हैं। नीम में है प्रसन्न, हल्का मिज़ाज, प्रसन्नचित्त-आकर्षक कोमल रंग योजना, सुकून देने वाली दृशयात्मकता। ये चित्र कविता से बहुत गहरे जुड़े हुए हैं. आम के सूखे पेड़ का विषय गंभीर है और चित्रांकन और रंग का उपयोग उसे और गंभीर बनाने में मददगार साबित हुआ है।

‘नीम तेरी निम्बोली पीली’ में डाल, पत्ते, फूल, निम्बोली, छाँव का किया गया वर्णन सुंदर तथा अनूठा है। मसलन
नीम तेरे फूल / बहुत झीने / भीनी खुशबू /शक्ल से पशमीने
जैसी पंक्तियाँ आगे बढ़ते-पढ़ते एक से बढ़कर एक तरल कल्पनाएं ! मन में ख़ुशी की लहर उठती है।
नीम तेरी निम्बोली पीली / भीतर जाके धूप/ हुई गीली !

इन पंक्तियों को पढ़ते हुए निम्बोली के पीले रंग को देखकर धूप या सूरज की याद आना स्वाभाविक है। सामान्य भी है। लेकिन ‘भीतर जाके धूप हुई गीली‘ यह सिर्फ सुशील शुक्ल लिख सकते है।

सामान्यत: बैक कवर पर- किताब के बारे में लिखा जाता है। या तो किताब में से कुछ विशेष पंक्तियाँ चुन कर रखी जाती हैं। इस किताब में और बाकी भी कुछ किताबों में यह एक अलग बात दिखाई देती है। नीम तो मेरा प्रिय वृक्ष था ही। इस कविता ने इसे और भी प्रिय बना दिया है।“

‘आम के सूखे पेड पर’ पर उन्होंने कहा कि पेड़ के सूखते ही जीवन की सारी संभावनाये हल्के-हल्के मिटने लगती हैं। खत्म होने लगती हैं। पेड़ के होने का मतलब सिर्फ हरे पत्ते, बौर, फूलोंका खिलना नहीं है, बल्कि उसके इर्द-गिर्द बच्चोंका शोर होना, कोयल का गीत, सबको सुकून देनेवाली उसकी छाँव …पेड होने का अभिन्न अंग है। इस किताब के चित्र, चित्र-शैली, किताब के लिये इस्तेमाल किया गया कागज-उसका स्पर्श, खाकी रंग, इस विषय को अधिक गंभीरता से पाठक के सामने रखता है।

कैरन हेडॉक की चित्र-शैली, उनकी शैली बाकी चित्रकारों से अलग है। पर वह इस किताब के लिहाज से child-friendly नहीं लगती। उनके बनाए मानवीय चेहरे लाउड लगते हैं। बाकी किताबों के साथ इस किताब को यदि रखा जाए तो बच्चे इसे उठायेंगे या नहीं? या किस तरह? यह देखना कुतूहल का विषय होगा। कैरन हेडॉक की चित्र-शैली के बारे में ये मेरा व्यक्तिगत विचार है।

हम जब बैक कवर पर पढ़ते हैं तो चौकन्ना हो जाते है। क्या कल्पना है लेखक की
‘आम का सूखा पेड आम की तस्वीर है।‘ जैसे, घर में घर से चले/ खोये लोगों की तस्वीरें होती है। अलग सोच, अलग विचार।और उनसे जुड़ी ढेर सारी यादें। एक अनूठे अनुभव में हम डूब जाते हैं।

पूनम शर्मा ने तीन कविता चित्र पुस्तकों ‘मछली नदी खोल के बैठी’ ‘आदा पादा’ और टिफिन दोस्त पर उन बच्चों के साथ काम के अनुभवों को साझा किया जिनकी पहली भाषा हिन्दी नहीं है। इन किताबों को लेकर उनके अलग-अलग अनुभव रहे। उन्होंने बच्चों को शुरू में कविताएं पढ़कर नहीं सुनाई थीं। उन्होंने इन किताबों को चुनने का मौका दिया। बच्चों द्वारा चुनी गई किताबों में ये कविता की किताबें थीं जिनपर उन्होंने उनके अनुभव जानने की कोशिश की थी। जैसे आदा पादा किताब को क्यों चुना? तो बच्चे का जवाब था कि – मैम आपने देखा नहीं कि किताब में सांप भी गैस निकाल रहा है। इस तरह के कुछ मजेदार प्रतिक्रियाएं रहीं बच्चों की।

कहानी और कविता जैसी विधाओं के फ़र्क को भी वे समझ पा रहे थे। टिफिन दोस्त को पढ़ते हुए उन्हें लगा कि यह तो कहानी की किताब है। लेकिन आखिरी पेज पर जब उन्होंने एक साथ पूरी कविता पढ़ी, साथ में दुहराया तो वे समझे कि यह कविता की किताब है। जैसे-जैसे कविताएं बच्चे पढ़ते जाते थे, उन्हें मजा आ रहा था। अलग-अलग अर्थ तक पहुँच रहे थे। जैसे मछली नदी खोल के बैठी पढ़ते हुए उन्होंने ‘खोल’ शब्द के अर्थ अलग-अलग संदर्भों में समझने की कोशिश की। चित्रों में क्या खास बात है ? वे यह भी देखने की कोशश कर रहे थे। अलग-अलग कविताओं के साथ वे अपने पसंद का संबंध बैठ रहे थे। जैसे आदा-पादा के साथ अपने खाने से जोड़ा।

कुँवर ने एकलव्य द्वारा हाल ही में प्रकाशित किताब ‘ओ पेड़ रंगरेज’ पर अपने अनुभवों को साझा किया।
‘पहली नजर में यह किताब गतिविधियों की किताब जैसी लगती है। लेकिन धीरे-धीरे पन्ना-दर-पन्ना गुजरते हुए लगता है कि बनाने का उद्देश्य गहरा है। सुशील शुक्ल की कविताएं इसमें हैं और किताब प्राकृतिक रंगों की बात करती है। यह जीवन के अलग-अलग अनुभवों से जुड़ता है।‘ उन्होंने इस किताब से छह कविताओं का पाठ किया।

उन्होंने हमने ‘हमने जामुन खाए’ कविता के माध्यम से सामाजिक बंधनों को नकारने की बात को जोड़ा। चुकंदर पर आधारित कविता ‘तेरहवें साल.. ‘ को एक खास उम्र वर्ग के समुदाय के विभिन्न वर्गों से आने वाले बच्चों और और उसकी समस्याओं से साथ जोड़कर अपने अनुभवों को रखा। ‘आम के पत्ते’ पर बात करते हुए ‘आम होना’ आम के साथ ही क्यों उपयुक्त है। ‘गुलमोहर’ कविता के साथ अपने बचपन और यायावरी के अनुभवों को जोड़ते हुए कविता को पढ़ा।

जय शेखर ने बलरामपुर उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शाला के बच्चों के साथ ‘ये सारा उजाला सूरज का’ कविता पर अपने काम के अनुभवों को रखा। इस कविता के बहाने उन्होंने सीखने के विभिन्न मौके बनाए। जैसे सूरज के आसपास की बातें , नदी के बहने, बांधों के निर्माण, बिजली उत्पादन, ऊर्जा और भोजन विषय पर अलग-अलग सवालों के माध्यम से बच्चों के साथ संवाद किया। उन्होंने बच्चों के साथ इस कविता की पंक्तियाँ बढ़ाने की गतिविधि की।

एक बानगी देखते हैं

ये सारी फसलें सूरज की

हर नया निवाला सूरज का

चाँद चमकता सूरज से

इस नभ का तारा सूरज का

लेखन की गतिविधि में उन्होंने सूरज को डायरी, सूरज को पत्र, सूरज की आत्मकथा, नदी और सूरज का संवाद आदि पर बच्चों से लेखन करवाया। जो बहुत मजेदार गतिविधि रही।

इन सारी गतिविधियों में से निकल कर आई सामग्री के साथ बच्चों ने इसी किताब पर ‘ये सारा उजाला सूरज का’ पर केंद्रित दीवार पत्रिका बनाई।

लगभग दो घंटे तक चले इस वेबिनार में कविता को लेकर काफी सार्थक बातचीत हुई। अन्य प्रतिभागियों ने अपने प्रश्न भी रखे।

इस सत्र के अंत में पराग टीम के द्वारा एलुमनाई के साथ जुड़ाव को लेकर कुछ सुझाव दिए गए।
इस वेबिनार का अगला भाग मार्च में आयोजित होगा।

नवनीत नीरव चिल्ड्रन लाइब्रेरी एक्सपर्ट हैं। उन्होंने पराग के साथ बच्चों के पुस्तकालय कार्यक्रमों के प्रबंधन के अलावा विभिन्न संगठनों में काम किया है। वह पराग के लाइब्रेरी एडुकेटर्स कोर्स के पूर्व छात्र हैं और वर्तमान में रूम टू रीड के साथ गुणवत्ता पठन सामग्री पर कार्यरत हैं। वे कहानीकार भी हैं।

When Pictures Speak a Thousand Words

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1993 से हर साल 22 मार्च विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्राज़ील के रिओ डि जेनेरियो के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में साल 1992 में मीठे पानी के महत्व पर ध्यान केंद्रित…

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